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Tamad Rebellion (1782-1820) | तमाड़ विद्रोह : (1782-1820 ई.)
विद्रोह के कारण :
छोटानागपुर के तमाड़ को मुख्य केन्द्र बनाकर मुण्डा आदिवासियों ने 18वीं सदी के अंतिम चतुर्थाश में जो विद्रोह छेड़ा, उसे ‘तमाड़ विद्रोह’ कहा जाता है। कम्पनी की बाहरी लोगों को शह देने की नीति एवं नागवंशी शासकों के अत्याचार इस विद्रोह के मूल कारण थे।तमाड़ में मुण्डा आदिवासी कम्पनी सरकार के अत्याचार से त्रस्त थे। कम्पनी की नीतियों ने यहाँ बाहरी लोगों के आने और उनके सुविधा-संपन्न होने का मार्ग प्रशस्त किया। दूसरी ओर वे छोटानागपुर खास के नागवंशी शासकों के अत्याचार और शोषण के कारण घुटन महसूस कर रहे थे।विद्रोह का स्वरुप
1782 ई. में धीरे-धीरे तमाड़ में रामगढ़, पंचेत और वीरभूम के विद्रोही इकट्ठा होने लगे। वे व्यापारियों को भी लुटने लगे थे। नागवंशी शासक ने विद्रोहियों को दबाने के लिए तमाड़ पर आक्रमण किया। इससे विद्रोह और भड़क उठा। 1783 ई. में विद्रोहियों को कुछ जमींदारों का भी साथ मिल गया। अंतत: मेजर जेम्स क्रॉफर्ड ने दिसम्बर, 1783 ई. में तमाड़ में प्रविष्ट होकर विद्रोहियों को आत्म-समर्पण के लिए विवश किया। तमाड़ में अगले पाँच वर्षों तक शांति बनी रही।
1789 ई. में तमाड़ में पुनः विद्रोह भड़क उठा। विष्णु मानकी एवं मौजी मानकी के नेतृत्व में 3,000 मुण्डाओं ने कर देने से इंकार कर दिया। कैप्टेन होगन को विद्रोहियों को दबाने के लिए भेजा गया, लेकिन वह असफल रहा। इसके बाद लेफ्टिनेंट कूपर को भेजा गया। कूपर ने जुलाई, 1789 ई. के आरंभ में विद्रोहियों का दमन कर दिया। तमाड़ अगले 4 वर्ष तक शांत रहा।
नवम्बर, 1794 में तमाड़ में विद्रोह फिर से भड़क उठा, जिसे दबाना अंग्रेजों के लिए मुश्किल हो गया। 1796 में राहे के राजा नरेन्द्र शाही ने अंग्रेजों का साथ दिया। जब राजा और उसके सैनिक सोनाहातू गए तो उन पर गाँव वालों ने आक्रमण कर दिया। कैप्टेन बी. बेन को जब पता चला कि आदिवासी नरेन्द्र शाही का विरोध कर रहे हैं, तो उसे हटा दिया। 1796 ई. में इस विद्रोह ने व्यापक रूप ले लिया। तमाड़, सिल्ली, सोनाहातू व राहे के सभी आदिवासी तथा जमींदार इसमें कूद पड़े। तमाड़ के ठाकुर भोलानाथ सिंह, सिल्ली के ठाकुर विश्वनाथ सिंह, विशुनपुर के ठाकुर हीरानाथ सिंह, बुन्डू के ठाकुर शिवनाथ सिंह और आदिवासी नेता राम शाही मुण्डा एवं उसका भतीजा ठाकुर दास मुण्डा आदि विद्रोहियों के प्रमुख नेता थे। राहे के नरेन्द्र शाही के रिश्तेदार मार डाले गए, लेकिन स्वयं नरेन्द्र शाही भागने में सफल हो गए। अप्रैल, 1798 में कैप्टेन लिमण्ड तमाड़ के प्रमुख विद्रोही नेताओं को पकड़ने में सफल हुआ। विद्रोहियों में सबसे शक्तिशाली भोलानाथ सिंह को कैप्टेन बेन ने गिरफ्तार किया। नेताओं की गिरफ्तारी के बाद तमाड़ विद्रोह स्वतः बिखर गया।तमाड़ विद्रोह के प्रमुख तथ्य :
- तमाड़ विद्रोह का मुख्य कारण आदिवासियों को भूमि से वंचित किया जाना था अंग्रेजी कंपनी, तहसीलदारों, जमींदारों एवं गैर आदिवासियों (दिकू) द्वारा उनका शोषण किया जाना था।
- इस विद्रोह का प्रारंभ 1782 में छोटानागपुर की उरांव जनजाति द्वारा जमींदारों के शोषण के खिलाफ हुआ, जो 1794 तक चला।
- ठाकुर भोलानाथ सिंह के नेतृत्व में यह विद्रोह प्रारंभ हुआ था। इतिहास में यही ‘तमाड़ विद्रोह‘ के नाम से प्रसिद्ध है।
- 1809 में अंग्रेजों ने छोटानागपुर में शांति की स्थापना हेतु जमींदारी पुलिस बल की व्यवस्था की पर कोई भी फर्क नहीं आया। क्योंकि पुनः 1807, 1811, 1817 एवं 1820 में मुंडा एवं उरांव जनजातियों ने जमींदारों एवं दिकूओं के खिलाफ आवाज बुलंद की।
- 1807 में तमाड़ के दुख मानकी एवं 1819-20 में रुगु एवं कोनता के नेतृत्व में मुंडाओं ने विद्रोह किया।
Tilka Rebellion (1784-1785) | तिलका आंदोलन : (1784-1785 ई.)
विद्रोह के कारण :
वर्ष 1784 ई. में तिलका मांझी ने अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन आरंभ किया, जिसे ‘तिलका आंदोलन’ के नाम से जाना गया। यह आंदोलन अपनी जमीन पर अधिकार के लिए, पड़हियों/पहाड़ियों को अधिक सुविधा देकर फूट डालने वाली नीति के विरोध में तथा क्लिवलैण्ड के दमन के विरोध में था।विद्रोह का स्वरुप
18वीं सदी के अंतिम वर्षों में राजमहल क्षेत्र में संथालों का प्रवेश हुआ। संथाल आदिवासियों के राजमहल प्रवेश का पड़हिया/पहाड़िया समुदाय ने विरोध किया। कुछ मुठभेड़ों के बाद संथाल इस क्षेत्र में बस गए। संथाल पहाड़ों पर रहते थे और जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी की नावें गंगा नदी से होकर गुजरती थीं, तब वे पहाड़ों से उतर कर उन्हें लूटते थे तथा डाक ले जाने वालों की हत्या कर देते थे। वे गुरिल्ला युद्ध (छापामार युद्ध) करने में बड़े कुशल थे। वर्ष 1778 ई. में ऑगस्टल क्लिवलैण्ड को राजमहल क्षेत्र का पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया गया। उसने फूट डालने की नीति अपनाई और नियुक्ति के नौ महीने के भीतर 47 पड़हिया सरदारों को अपना समर्थक बना लिया और जौराह नामक व्यक्ति को इनका प्रमुख बनाया। पड़हिया सरदारों को कुछ सुविधाएँ दी गई और अंग्रेज उनसे कोई कर नहीं लेते थे। इस बात का विरोध संथाल समुदाय के एक वीर सरदार तिलका मांझी ने किया। उसका कहना था कि नीति एक समान होनी चाहिए। तिलका ने अंग्रेजों के समर्थक पड़हिया जाति के जौराह का भी विरोध किया। तिलका मांझी का उर्फ नाम जाबरा पहाड़िया था। तिलका ने भागलपुर के पास वनचरीजोर नामक स्थान से अंग्रेजों का विरोध आरंभ किया। राबिनहुड की भाँति वह जब तब शाही खजानों व गोदामों को लूट कर गरीबों के बीच बाँट देता था। उसने साल पत्ता के माध्यम से घर-घर संदेश भेजा और संथालों को संगठित करना शुरू कर दिया। वर्ष 1784 ई. के आरंभ में अपने अनुयायियों के सहयोग से तिलका ने भागलपुर पर आक्रमण किया। 13 जनवरी के दिन वह ताड़ के एक पेड़ पर छुप कर बैठ गया। उसी रास्ते से होकर गुजरते हुए घोड़े पर सवार क्लिवलैण्ड को उसने तीर से मार गिराया।
इससे अंग्रेजी सेना में दहशत फैल गई। अब अंग्रेजी सेना की मदद के लिए आयरकूट को भेजा गया। आयरकूट ने पड़हिया सरदार जौराह के साथ मिलकर तिलका मांझी के अनुयायियों पर हमला बोल दिया। तिलका मांझी के अनेक अनुयायी हताहत हुए। लेकिन तिलका मांझी बचकर भाग निकला और सुल्तानगंज की पहाड़ियों में जा छिपा। 1785 ई. में तिलका मांझी को धोखे से पकड़ लिया गया और उसे रस्सी से बाँधकर चार घोड़ों द्वारा घसीटते हुए भागलपुर लाया गया, जहाँ उसे बरगद के पेड़ पर लटका कर फाँसी दे दी गई। वह स्थान आज ‘बाबा तिलका मांझी चौक’ के नाम से जाना जाता है।तिलका आंदोलन के प्रमुख तथ्य :
- तिलका आंदोलन का प्रारंभ 1783 ई. में तिलका मांझी के नेतृत्व में द हुआ।
- इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य आदिवासी स्वायत्ता की रक्षा एवं इस क्षेत्र से अंग्रेजों को खदेड़ना था। इन्होंने आधुनिक रॉबिनहुड की भांति अंग्रेजी खजाना लूट कर गरीबों एवं जरूरतमंदों के बीच बांटना प्रारंभ किया। तिलका मांझी द्वारा गांव-गांव में सखुआ पत्ता घुमाकर विद्रोह का संदेश भेजा जाता था।
- तिलका मांझी ने सुल्तानगंज की पहाड़ियों से छापामार युद्ध का नेतृत्व किया।
- तिलका मांझी के तीरों से मारा जाने वाला अंग्रेज सेना का नायक अगस्टीन क्लीवलैंड था।
- 1785 ई. में तिलका मांझी को धोखे से गिरफ्तार कर लिया गया और भागलपुर में बरगद पेड़ पर लटका कर फांसी दे दी गयी।
- वह स्थान आज भागलपुर में बाबा तिलका मांझी चौक के नाम से प्रसिद्ध है।
- भारतीय स्वाधीनता संग्राम के पहले विद्रोही शहीद तिलका मांझी थे।
- सर्वाधिक महत्व की बात यह है कि तिलका विद्रोह में महिलाओं की भी भागीदारी थी, जबकि भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में महिलाओं ने काफी बाद में हिस्सा लेना प्रारंभ किया।