Irrigation in Jharkhand : झारखंड से और मुख्यमंत्री ने कोनार सिंचाई परियोजना में तेजी लाने के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस और भूमि अधिग्रहण के लिए टेंडर की प्रक्रिया जल्द कराने का निर्देश दिया। उन्होंने गुमानी बराज परियोजना को अगले साल तक चालू किए जाने पर जोर दिया। कहा कि इस परियोजना के शुरू होने से 16000 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता विकसित होगी।
Irrigation in Jharkhand :
- झारखण्ड की कृषि मॉनसून पर आधारित है और मॉनसून स्वयं अनिश्चित है। अतः ऐसे में सिंचाई की आवश्यकता बढ़ जाती है।
- राज्य की कुल कृषि भूमि का लगभग 11 प्रतिशत भाग सिंचित हैं। कुल सिंचित भूमि का 58.3 प्रतिशत भाग सतही जल द्वारा एवं 41.7 प्रतिशत भाग भूमिगत जल द्वारा सिंचित है।
- झारखंड के दुमका, गोडा, साहेबगंज और गुमला जिलों में सिंचाई की सर्वाधिक आवश्यकता पड़ती है। रांची, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम और देवघर जिलों में सिंचाई की उच्च आवश्यकता पढ़ती है जबकि धनबाद, बोकारो, चतरा, पूर्वी सिंहभूम जिलों में इसकी निम्न आवश्यकता पड़ती है। पलामू, गढ़वा लातेहार, हजारीबाग, गिरिडीह में सिंचाई की मध्यम आवश्यकता पड़ती है।
सिंचाई परियोजनाएं
परियोजना का नाम | प्रारंभ होने की अवधि | स्थान |
स्वर्णरेखा प्रोजेक्ट (बहुउद्देशीय) | पांचवीं पंचवर्षीय योजना. | सिंहभूम |
उत्तर कोयल जलाशय | पांचवी पंचवर्षीय योजना | पलामू |
अजय बराज | पाचवीं पंचवर्षीय योजना | देवघर |
कोनार डायवर्शन | पांचवीं पंचवर्षीय योजना | हजारीबाग |
पुनासी जलाशय | सातवी पंचवर्षीय योजना | दुमका |
औरंगा जलाशय | सातवी पंचवर्षीय योजना | पलामू |
तोरई जलाशय | 1978 | दुमका |
कस जलाशय | 1979 | रांची |
बटाने जलाशय | 1981 | पलामू |
कतरी जलाशय | 1981 | गुमला |
सोनुआ जलाशय | 1982 | प. सिंहभूम |
पत्तरातु जलाशय | 1982 | रांची |
केशो जलाशय | 1982 | हजारीबाग |
सलइया जलाशय | 1982 | हजारीबाग |
सतपोटका जलाशय | 1982 | सिंहभूम |
नकटी जलाशय | 1983 | सिंहभूम |
रामरेखा जलाशय | 1983 | गुमला |
भैरवी जलाशय | 1984 | हजारीबाग |
पंचखेरी जलाशय | 1984 | हजारीबाग |
घनसिंह टोली जलाशय | 1986 | गुमला |
सुरंगी जलाशय | 1987 | सिंहभूम |
अपर शख जलाशय | 1987 | गुमला |
कंसजोर जलाशय | 1989 | गुमला |
गुमानी बराज | – | दुमका |
झरझरा जलाशय | – | सिंहभूम |
सुरु जलाशय | – | सिंहभूम |
सिंचाई के साधन
राज्य में सिंचाई निम्नलिखित साधनों द्वारा की जाती है।
(i) कुआ : यह राज्य का सबसे प्राचीन एवं प्रचलित सिंचाई का साधन है।
- झारखण्ड में सर्वाधिक सिंचाई इसी से होती है।
- झारखण्ड के कुल सिंचित क्षेत्र के 29.5 प्रतिशत भाग पर कुओं द्वारा सिंचाई जाती है।
- कुओ द्वारा सिंचाई के दृष्टिकोण से गुमला प्रथम स्थान (कुल सिंचित भूमि का 87.2 प्रतिशत) रखता है। इसके बाद गिरिडीह (77.9 प्रतिशत) रांची (71.4 प्रतिशत) धनबाद (56.2 (52.7 प्रतिशत) तथा सिंहभूम (17.5 प्रतिशत) का स्थान आता है।
(ii) नलकूप : नलकूप आधुनिक युग का कुआ है, जिसने भूमि के अन्दर की गहराई से जल की स्थायी संतृप्त सीमा तक खोखला पाइप डालकर विद्युत या डीजल चालित इंजन के सहयोग से जल निकला जाता है।
- झारखण्ड में नलकूप का विकास सीमित रूप में हुआ है, जिसका मुख्य कारण इस क्षेत्र में चट्टानों की कठोरता है।
- झारखण्ड के कुल सिंचित क्षेत्र के 84 प्रतिशत भाग पर नलकूप द्वारा सिंचाई की जाती है।
- नलकूप द्वारा सर्वाधिक सिंचाई लोहरदगा जिले में (कुल सिंचित भूमि का 32.6 प्रतिशत) तथा सबसे कम देवघर जिले में (3.5 प्रतिशत की जाती है।
(iii) तालाब : तालाब घरातलीय सिंचाई का एक अन्य महत्वपूर्ण साधन है। तालाब भूमि पर प्राकृतिक रूप से बने सदों में वर्षा का जल एकत्रित होने से निर्मित होता है।
- राज्य में प्राचीनकाल से ही तालाब सिंचाई के प्रमुख साधन रहे हैं।
- झारखण्ड के कुल सिंचित क्षेत्र के 18.8 प्रतिशत भाग पर तालाव द्वारा सिंचाई की जाती है।
- तालाब द्वारा सबसे अधिक सिचाई देवघर जिला में कुल सिंचित भूमि का 49.3 प्रतिशत) की जाती है। इसके बाद क्रमश: धनबाद (43.8 प्रतिशत साहेबगंज (27.7 प्रतिशत), दुमका 21.7 प्रतिशत) और गोडा (26.6 प्रतिशत) का स्थान आता है।
(iv) नहर : राज्य की भौतिक बनावट नहर सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं है, फिर भी नदियों पर छोटे छोटे डैम बनाये गये हैं, जिनसे नहरे निकाली गयी है और सिंचाई की जाती है।
- राज्य के कुल सिंचित क्षेत्र के 17.13 प्रतिशत भाग पर नहरों द्वारा सिंचाई होती है।
- नहरों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई सिंहभूम क्षेत्र में की जाती है।