Medieval History of Jharkhand in Hindi | झारखंड का इतिहास बहुत पुराना और गौरव से भरा रहा है। मैं इस लेख के माध्यम से झारखंड के इतिहास के बारे में जानकारी दे रहा हूँ।आशा है कि यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होगी और आपकी प्रतियोगी परीक्षाओं, झारखंड और जी.के. के बारे में सभी प्रकार की जानकारी के लिए मददगार साबित होगी। इसके लिए आप इस वेबसाइट पर विजिट करें।
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Medieval History of Jharkhand
- छोटानागपुर के जनजातीय क्षेत्रों के लिए झारखण्ड शब्द का प्रयोग पहली बार मध्यकाल में ही प्रारंभ हुआ। इसका प्रथम प्रयोग 13 वीं शताब्दी के एक ताम्रपत्र में हुआ है। इस काल में यह एक स्पष्ट एवं पृथक भू-खण्ड के रूप में संगठित हुआ।
- मध्यकाल के प्रारंभ में छोटानागपुर में कई छोटे-छोटे हिन्दू और अर्घ हिन्दू शासकों के राज्य थे जिनमें कोकरा के नागवशी, पलामू के रक्सैल सिंहभूम के सिंहवंश तथा मानभूम के मानवश प्रमुख थे।
- मध्यकाल में छोटानागपुर में अनेक जनजातीय राज्यों का गठन हुआ, जिनमें पलामू की चेरो जनजाति का राज्य प्रमुख था। चेरो ने रक्सैलों को अपदस्थ कर पलामू में अपनी सत्ता स्थापित की थी। इस काल के अन्य जनजातीय राज्यों में खरवार, उरांव, भार आदि के राज्य प्रमुख थे। इसके अतिरिक्त इस काल की अन्य छोटी रियासतों में सूर्यपुरा, पलामू, सोनपुरा, कुण्ड आदि सम्मिलित हैं।
- तेरहवीं शताब्दी छोटानागपुर क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि 1206 ई. में ने बख्तियार खिलजी झारखण्ड होकर नदिया पर आक्रमण किया था।
- इल्तुतमिश और बलबन के शासन काल में झारखण्ड पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि उस समय के नागवशी राजा हरिकण प्रभावशाली और शक्तिशाली था।
- तुगलक वंश के शासक मुहम्मद बिन तुगलक के सेनापति मलिक बया हजारीबाग क्षेत्र में चाई चाम्पा तक आ पहुंचा। संथालों के अनुसार यह आक्रमण 1340 ई. में इब्राहिम अली के नेतृत्व में हुआ था। उसने बीघा के किले पर अधिकार कर लिया, फलस्वरूप वहां के संथाल अपने सरदार के साथ भाग निकले।
- फिरोजशाह तुगलक ने छोटानागपुर के हजारीबाग पर आक्रमण किया और सतगांव के इर्द गिर्द एक बड़े क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। उसने जीते हुए क्षेत्र पर शासन कायम करते हुए सतगांवा को अपनी राजधानी बनायी।
- दिल्ली के तुगलक वंश व लोदी वंश सतगांवा से आगे नहीं बढ़ सके, क्योंकि उन्हें शक्तिशाली नागवशी राजाओं से मुकाबला करना पड़ा।
Medieval History of Jharkhand
- 1538 ई. में शेरशाह के सेनापति खवारा खां ने घेरो महाराजा महारथ चेरा को पराजित और लूट के सामान के साथ श्याम सुन्दर नामक एक सफेद हाथी प्राप्त किया।
- हुमायू के साथ संघर्ष के दौरान शेरशाह ने अपने अनेक अभियानों में इस क्षेत्र का उपयोग किया।
- शेरशाह ने बंगाल पर अधिकार के क्रम में तेलियागढ़ी के रास्ते (राजमहल की पहाड़ियों के बीच स्थित) का उपयोग किया था।
- मुगल-अफगान संघर्ष के दौरान छोटानागपुर का क्षेत्र अफगान विद्रोहियों जैसे हाजीबंधु जुनैद और बयाजिद आदि की शरणस्थली रहा। इस कारण मुगल शासक अकबर एवं जहांगीर का ध्यान झारखण्ड पर गया।
- बिहार व बंगाल विजय के बाद अकबर ने 1585 ई. में शाहबाज खां को कोकरा (झारखण्ड) के नागवंशी शासक के विरुद्ध विजय प्राप्त करने हेतु सेना भेजी। इस युद्ध में नागवंशी शासक मधुकर शाह की पराजय हुई और उसने मालगुजार बनना स्वीकार कर लिया।
- झारखण्ड का क्षेत्र सिंहभूम का मुगलों के साथ सम्पर्क अकबर के समय में ही हुआ। उसके समय पोराहाट सिंहवंशी राजा लक्ष्मी नारायण सिंह, नरपत सिंह प्रथम, कामेश्वर सिंह और रंजीत) सिंह थे।
- अकबर के अफगानों के विरुद्ध अभियान के क्रम में 1591-92 में राजा मानसिंह अकबर का सेनापति) सिंहभूम होकर गुजरा। अंत में कामेश्वर सिंह के उत्तराधिकारी राजा रणजीत सिंह ने वह मुगलों की अधीनता को स्वीकार कर लिया। इतना ही नहीं. उसने मानसिंह के अंगरक्षक दल में शामिल होना भी कबूल कर लिया।
- लगभग इसी समय हजारीबाग और धनबाद
- (मानभूम) अकबर के सम्पर्क में आया आइन-ए
- अकबरी के अनुसार हजारीबाग के दो स्थान है और चम्पा’ परगने के रूप में सूबा बिहार में. शामिल थे।
- राजा मानसिंह ने छोटानागपुर के छोटे-छोटे राजाओं को पराजित किया। उसने पलामू पर आक्रमण कर घेरो को पराजित किया। आगे चेरो राजा भागवत राय ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली लेकिन मेरो मे अकबर की मृत्यु (1605) के बाद पुनः अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली।
- झारखण्ड के राजा मधुसिंह ने मानसिंह को उड़ीसा अभियान में मदद की थी।
- 1592 में मानसिंह ने राजमहल को बंगाल एवं बिहार की राजधानी बनाया।
- तुजुक-ए-जहागीरी के अनुसार 1615-16 ई. में इब्राहिम खां ने झारखण्ड क्षेत्र पर आक्रमण कर शख नदी पर अधिकार कर लिया था। शंख नदी उस समय हीरों के लिए प्रसिद्ध थी।
- इस आक्रमण के समय वहां के राजा दुर्जनसाल (हीरो का सबसे बड़ा पारखी) थे, जिन्हें गिरफ्तार कर ग्वालियर के किले में कैद कर दिया गया। 12 वर्ष बाद दुर्जनशाल को मुक्त कर जहागीर ने उसके राज्य को पट्टा के रूप में छः हजार सलाना पर दे दिया और उसे ‘शाही की पदवी दी गयी।
- दोइसा के नवरत्नगढ़ राजप्रसाद का निर्माण दुर्जन साल ने करवाया था। इस पर मुगल स्थापत्य
- कला का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। जहांगीर की आत्मकथा तुजुक-ए-जहागीरी में छोटानागपुर के क्षेत्र से सोने की प्राप्ति का उल्लेख ए है। जहागीर के शासन काल में पलामू में दो चेरो राजाओं ने राज किया।
- अफजल खा (अबुल फजल के पुत्र) तथा इरादत खा ने जहागीर के शासन काल में पलामू के चेरो राजाओं के विरुद्ध हुए सैन्य अभियान का नेतृत्व किया था।
- जहागीर के शासन काल में कोकरा (छोटानागपुर) के क्षेत्र पर मुगलों का अधिकार स्थापित हुआ। शाहजहां के समय मुगल-नागवंशी संबंध सौहार्दपूर्ण थे। यह संबंध पूरी सत्रहवी शताब्दी में अर्थात् शाहजहां और औरंगजेब के शासन काल में बना रहा। इस शांतिपूर्ण वातावरण में नागवंशी शासक रघुनाथ शाह ने दोइसा, चुटिया, जगन्नाथपुर और बोडिया में सुन्दर मंदिरों का निर्माण करवाया।
- पलामू के चेरो राजा प्रताप राय के खिलाफ 1641-42 ई. में हुए सैन्य अभियान का नेतृत्व शाइस्ता खा ने किया था।
- चेरो राजा प्रताप राय ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली। बदले में उसे शाहजहा ने 1,000 का मनसब प्रदान किया।
- शाहजहां के शासनकाल के 16वें वर्ष में शाइस्ता खां ने पलामू के घेरो राज पर आक्रमण किया।इस समय पलामू का राजा तेज राय था।
- शाहजहां के समय सिंहवंश सिंहभूम) व मानवंश (मानभूम) के साथ मुगलों के संबंध के विषय में जानकारी उपलब्ध नहीं है।
- औरंगजेब के समय झारखण्ड में मुगलों का संघर्ष मुख्य रूप से पलामू के बेरो राजाओं के साथ होता रहा औरंगजेब के शासन के प्रारंभिक वर्षों में पलामू का चेरो राजा मेदिनी राय था।
- पादशाहनामा एवं आलमगीरनामा के अनुसार 17 दिसम्बर 1660 ई. को औरगा नदी के किनारे
- दाउद खान (औरंगजेब के सेनानायक) एवं चेरो राजा साहब राय की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ जिसमें साहब राय की हार हुई।
- औरंगजेब के शासन काल के अधिकांश समय में कोकरा का नागवंशी राजा रघुनाथ शाह था।
- रघुनाथ शाह के धर्मगुरु हरिनाथ थे।
- औरंगजेब के शासन काल में 1667 ई. में दलेल सिंह रामगढ़ का राजा बना। उसने 1670 ई. में
- अपनी राजधानी बादाम से हटाकर रामगढ़ में स्थापित की।
- औरंगजेब के समय मुगलों का हजारीबाग सिंहभूम और मानभूम जिलों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं
- धनबाद जिला झारखण्ड का एकमात्र ऐसा क्षेत्र था. जो मुस्लिम आक्रमणों से पूरी तरह बचा रहा
- उत्तर मुगल काल में फैली अराजकता का लाभ उठाकर झारखण्ड के सभी छोटे-बड़े राज्य स्वतंत्र हो गये।