Soils of Jharkhand: झारखंड राज्य में लेटराइट मिट्टी के तीन क्षेत्र है- पश्चिमी रांची और दक्षिणी पलामू, संथाल परगना में राजमहल का पूर्वी भाग, और सिंहभूम में डाल भूमि का दक्षिणी पूर्वी भाग। इस मिट्टी का रंग गहरा लाल होता है।
Soils of Jharkhand :
चट्टानों के टूटने फूटने तथा उनमें भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन के फलस्वरूप जो तत्व एक अलग रूप ग्रहण करता है वह अवशेषी मिट्टी कहलाता है। झारखंड के छोटा नागपुर पठारी में मुख्यत अवशिष्ट प्रकार की मिट्टी दो विभिन्न खनिजों और चट्टानों के अपक्षय और परिवर्तन से बनी है।
झारखंड में मिट्टियों के प्रकार-
(i) लाल मिट्टी
(ii) काली या रेगुर मिट्टी
(iii) लैटेराइट मिट्टी
(iv) बलुई मिट्टी
(v) जलोढ़ मिट्टी
(vi) अभ्रक प्रधान मिट्टी
(i) Soils of Jharkhand | लाल मिट्टी
- झारखण्ड राज्य में लाल मिट्टी का सर्वाधिक विस्तार पाया जाता है।
- यह प्रदेश की मुख्य मिट्टी है।
- लाल मिट्टी का सबसे अच्छा विकास आर्कियन काल की चट्टानों प्रमुखतः आर्कियन, ग्रेनाइट तथा नीस के क्षेत्र में हुआ है। ज्ञातव्य है कि झारखण्ड के 90 प्रतिशत भू-भाग में आर्कियन चट्टानें पायी जाती है।
- लाल मिट्टी में मैग्नीशियम, फॉस्फेट, नाइट्रोजन तथा ह्युमस के अंश कम पाये जाते हैं, जबकि लोहे के अंश की अधिकता होती है।
- इस मिट्टी का रंग सामान्यतः लाल होता है, लेकिन पीला, धूसर, भूरा और कहीं कहीं काफी गहरा या काला रंग भी दिखायी पड़ता है।
- अवरख मूल की लाल मिट्टी हजारीबाग और कोडरमा क्षेत्र में पायी जाती है।
- सिंहभूम तथा धनबाद के कुछ हिस्सों में लाल काली मिश्रित मिट्टी पायी जाती है।
- दोन (निम्न भू-भाग) के क्षेत्र में गहरे रंग की मिट्टी पायी जाती है। क्ले की अधिक मात्रा के कारण यह मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है।
- लाल मिट्टी अधिकांशतः टांड (उच्च भूमि) में दिखायी पड़ती है। यहां उसका रंग अपेक्षाकृत हल्का होता है।
- यह मिट्टी ज्वार, बाजरा, कोदो, मूंगफली, रागी, गन्ना, चावल इत्यादि की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
(ii) काली या रेगुर मिट्टी :
- काली मिट्टी का विकास मुख्य रूप से राजमहल ट्रैप के क्षेत्र में हुआ है।
- इस मिट्टी का निर्माण बैसाल्टिक चट्टानों के ऋतुक्षरण के परिणामस्वरूप हुआ है।
- इस मिट्टी में लोहा, चूना, मैग्नीशियम एवं एल्युमिनियम की अधिकता पायी जाती है, जबकि इसमें नाइट्रोजन, जैविक पदार्थों तथा फॉस्फोरिक अम्ल की कमी पायी जाती है।
- काली मिट्टी पतली तहों में पायी जाती है, लेकिन घाटियों में ये तहें मोटी हैं। काली मिट्टी की मोटाई इस क्षेत्र में एक फीट से 50 फीट तक है।
- यह मिट्टी कपास की खेती के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। राजमहल ट्रैप के क्षेत्र में इस मिट्टी पर धान एवं चना आदि की अच्छी फसल होती है।
(iii) लैटेराइट मिट्टी :
- इस मिट्टी का रंग गहरा लाल होता है। इसमें लौह-ऑक्साइड की प्रधानता होती है।
- झारखण्ड में लैटेराइट मिट्टी के तीन क्षेत्र है- पाट क्षेत्र, राजमहल पहाड़ी का पूर्वी भाग और पूर्वी सिंहभूम ।
- झारखण्ड में लाया युक्त चट्टानों में अत्यधिक अपक्षय तथा अपक्षालन के परिणामस्वरूप लैटेराइट मिट्टी का विकास हुआ है।
- इस मिट्टी में एल्युमिनियम तथा लोहा का मिश्रित सिलिकेट पाया जाता है, जबकि नाइट्रोजन पोटाश की कमी पायी जाती है।
- यह मिट्टी कृषि के दृष्टिकोण से उपयुक्त नहीं होती है, क्योंकि इसकी उर्वरता अति निम्न होती. है। सिंचाई एवं उर्वरक की सहायता से इसमें धान, गन्ना, रागी इत्यादि की खेती की जाती है।
(iv) बलुई मिट्टी:
- दामोदर घाटी क्षेत्र में इस प्रकार की मिट्टी का विस्तार अधिक पाया जाता है।
- दामोदर घाटी में इस मिट्टी की बहुलता का मुख्य कारण यहां गोडवाना क्रम की चट्टानों का पाया जाना है, जिसमें बलुआ पत्थर तथा सेल की प्रधानता होती है।
- इस मिट्टी में लौह अंश की अधिकता होती है, जबकि चूना तथा ह्युमस के अं अपेक्षाकृत कम पाये जाते हैं।
- यह मिट्टी उपज की दृष्टि से कम लाभदायक है।
(v) Soils of Jharkhand | जलोढ़ मिट्टी :
- झारखण्ड में पायी जाने वाली यह मिट्टी नवीन प्रकार की मिट्टी है। इसमें मृदा परिच्छेदिका विकसित नहीं हुई है।
- झारखण्ड में इस मिट्टी का विकास मुख्य रूप से दो क्षेत्रों में हुआ है- (1) साहेबगंज का उत्तर पश्चिमी किनारा तथा उत्तरी एवं पूर्वी किनारा (2) पाकुछ का पूर्वी क्षेत्र।
- साहेबगंज के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी भाग में भांगर (पुरातन जलोढ़), जबकि पूर्वी भाग त पाकुड़ के क्षेत्र में खादर (नवीन जलोढ़ मिट्टी मिलती है।
- इस मिट्टी में चूना तथा पोटाश की अधिकता पायी जाती है, जबकि इसमें नाइट्रोजन एवं की कमी पायी जाती है।
(vi) अभ्रक प्रधान मिट्टी:
- अधक के खानों से अपक्षय के कारण उसके समीप के क्षेत्रों में इस प्रकार की मिट्टी पायी जाती है।
- इसका रंग हल्का गुलाबी होता है तथा इसमें बालू का अंश अधिक पाया जाता है।
- यह मिट्टी मुख्यतः कोडरमा तथा हजारीबाग की अधक पट्टी वाले क्षेत्र में पायी जाती है।
- कुछ अन्य प्रकार की मिट्टियां :
★ उच्च भूमि वाली धूसर पीली मिट्टी :
• यह मिट्टी पलामू गढ़वा, तथा लातेहार के ऊंचे पठारी क्षेत्रों में पायी जाती है।
• इसका रंग पीला और धूसर होता है।
★ धात्विक गुणों वाली मिट्टी :
- यह मिट्टी पश्चिमी सिंहभूम के दक्षिणी भाग में पायी जाती है।
- यह पशुपालन के लिए अधिक उपयुक्त होती है।
★ विभिन्नताओं से युक्त मिट्टी :
- यह मिट्टी पश्चिम सिंहभूम के कुछ क्षेत्रों तथा सरायकेला के अधिकांश क्षेत्र में पायी जाती है।
- इस मिट्टी का रंग उच्च भूमि में पीला तथा निम्न भूमि में काला होता है।
Geography Of Jharkhand | झारखण्ड का भूगोल