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झारखंड का प्राचीन इतिहास – पुरातत्व | History of Jharkhand – Archeology

History Of Jharkhand : झारखंड का इतिहास बहुत पुराना और गौरव से भरा रहा है। मैं इस लेख के माध्यम से झारखंड के इतिहास के बारे में जानकारी दे रहा हूँ।आशा है कि यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होगी और आपकी प्रतियोगी परीक्षाओं, झारखंड और जी.के. के बारे में सभी प्रकार की जानकारी के लिए मददगार साबित होगी। इसके लिए आप इस वेबसाइट पर विजिट करें।

झारखंड का प्राचीन इतिहास | पुरातत्व

  • झारखण्ड में पुरातात्विक उत्खनन से पूर्व मध्य एवं उत्तर पाषाणकालीन पत्थर के औजार और उपकरण बड़ी मात्रा में प्राप्त हुए हैं, जिससे यह प्रमाणित होता है कि झारखण्ड में आदिमानव निवास करते थे।
  • झारखण्ड में सबसे पुराने अवशेष पूर्व पुरापाषाण काल (1,00,000 ई. पू) के है। इन अवशेषों
    में पत्थर की कुल्हाड़ी, फलक, बेधनी, खुरचनी, बेधक, तक्षणी आदि प्रमुख हैं। ऐसे अवशेष सिंहभूम,
    रांची, हजारीबाग, संथाल परगना, पलामू आदि जिले में उत्खनन से प्राप्त हुए हैं।
  • मध्य पुरापाषाण काल (1,00,000 ई. पू. से 40,000 ई.पू) के अवशेष सिंहभूम, राधी, संथाल परगना से प्राप्त हुए हैं।
  • इन्हीं स्थलों से उत्तर पुरापाषाण काल (40,000 ई. पू. से 10,000 ई. पू.) के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं, जो पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ों से बने हैं।
  • मध्यपाषाण काल (9,000 ई. पू. से 4,000 ई. पू.) के अवशेष सिंहभूम, रांची, पलामू, धनबाद एवं संथाल परगना से प्राप्त हुए हैं।
  • हजारीबाग एवं रामगढ़ जिलों के विभिन्न स्थानों (बड़कागांव, माण्डू, रजरप्पा आदि) के पुरातात्विक अन्वेषण से पाषाणकालीन मानव द्वारा निर्मित पत्थर के औजार मिले हैं, जिनमें कुल्हाड़ी, बेधनी, खुरचनी, बेधक, तक्षणी आदि प्रमुख हैं।
  • • हजारीबाग जिले के इस्को’ नामक स्थान से एक पत्थर के बड़े खण्ड पर आदिमानव द्वारा निर्मित चित्र, शैल चित्र दीर्घा, विशाल खुला सूर्य मंदिर, गुफाएं आदि मिली है।
  • इस्को की चित्र दीर्घा में अंतरिक्ष यान, अंतरिक्ष मानव, नक्षत्र मंडल आदि के बहुत सारे चित्र अंकित
    हैं। इसके अलावे यहां से भूल-भुलैया जैसी आकृति भी पायी गयी है।
  • सीतागढ़ा पहाड़ (हजारीबाग) से छठी शताब्दी में निर्मित एक बौद्ध मठ के अवशेष प्राप्त हुए हैं। चीनी यात्री फाहियान ने भी इस बौद्ध विहार का उल्लेख किया है।
  • सीतागढा से प्राप्त पुरातात्विक महत्व के अधिकांश नमूने भूरे बलुआ पत्थर (ग्रे सैण्ड स्टोन) पर उकेर कर बनाये गये हैं। इनमें भगवान बुद्ध की चार आकृतियों से युक्त एक स्तूप, पत्थर की चौखटो पर उत्कीर्ण यक्षणियां तथा काले मूरे पत्थर की एक अप्सरा की आकर्षक खण्डित प्रतिमा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

झारखण्ड के प्रमुख पुरातात्विक स्थल

हजारीबाग / रामगढ़पलामू / गढ़वासिंहभूम
इस्कोशाहपुरलोटा पहाड़
सत पहाड़अमानत पुलचक्रधरपुर
सरैयादुर्गावती पुटेबो
रहमबजनाइसाडीह
गोलारंकाकलांबारूडीह
कुसुमगढ़वीरबंधपूर्णपानी
बड़कागांवचन्द्रपुरडुगडुगी
बांसगढ़झाबरसोरंगा
रजरप्पामैलापुरनीमडीह
  • विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग के प्रतीक चिह्न के रूप में व्यवहृत अष्टदल यहां से प्राप्त गुलाबी बलुआ पत्थर पर बने अष्टदल की ही अनुकृति है।
  • पलामू प्रमंडल के विभिन्न स्थानों की खुदाई से पूर्व मध्य एवं उत्तर पाषाणकाल के साथ-साथ नवपाषाणकाल के पत्थर के औजार प्राप्त हुए हैं, जिनमें कुल्हाड़ी, स्क्रैपर व ब्लेड प्रमुख हैं।
  • गढ़वा जिले के भवनाथपुर के निकट प्रागैतिहासिक काल के दुर्लभ शैल चित्र एवं कई प्राकृतिक गुफाएं प्राप्त हुई हैं। इन गुफाओं के अन्दर आखेट के चित्र भी हैं। इनमें हिरण, भैंसा आदि पशुओं के चित्र प्राप्त हुए हैं।
  • सिंहभूम जिले के बारूडीह नामक स्थान से पाषाणकालीन मृदभांड के टुकड़े. पक्की मिट्टी के मटके, पत्थर की हथौड़ी आदि प्राप्त हुए हैं।
  • सिंहभूम जिले के बोनगरा नामक स्थान से हाथ से बने मृदभांडों के टुकड़े, वलय प्रस्तर (Ring Stone). पत्थर के मनके कुल्हाड़ी आदि मिली हैं।
  • बोनगरा के निकट बानाघाट स्थल से नवपाषाणकालीन पत्थर की पांच कुल्हाडियां, चार वलब और पत्थर की थापी, पक्की मिट्टी की थापी और काले रंग के मृदभांड के टुकड़े आदि मिले हैं।
  • भारतीय पुरातत्व में असुर शब्द का प्रयोग झारखण्ड के रांची, गुमला और लोहरदगा जिलों के कई स्थलों की ऐतिहासिक पहचान के लिए प्रयुक्त हुआ है।
  • लोहरदगा से एक कांसे का प्याला प्राप्त हुआ है।
  • पाण्डु में ईंट की दीवार और मिट्टी के कलश सहित तांबे के औजार प्राप्त हुए हैं। यहां से एक
  • चार पाये वाली पत्थर की चौकी मिली है, जो पटना संग्रहालय में है। रांची के नामकुम में तांबे एवं लोहे के औजार और वाण के फलक मिले हैं।
  • मुरद से तांबे की सिकड़ी और कांसे की अंगूठी मिली है। लुपंगड़ी में प्राचीन कब्रगाह के प्रमाण मिले हैं। कब्रगाह के अंदर से तांबे के आभूषण और पत्थर के मनके प्राप्त हुए हैं।
  • जुरदाग, परसधिक, जोजड़ा. हाड़दगा, चिपड़ी आदि स्थलों से पुरापाषाण और उच्च पुरापाषाण काल के उपकरण मिले हैं। कोनोलको, सरदकेल, भल्लाऊंगरी आदि स्थलों से लघु पाषाणकालीन उपकरण मिले हैं।
  • परसधिक में उच्च पुरापाषाण और लघु पाषाणकालीन उपकरणों के साथ-साथ मध्य पाषाणकालीन उपकरण भी प्राप्त हुए हैं।
  • सिंहभूम जिले के बेनुसागर से सातवीं शताब्दी की जैन मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।
  • हजारीबाग जिले के दूधपानी नामक स्थान से आठवीं शताब्दी के अभिलेख प्राप्त हुए हैं।
  • दूधपानी के निकट दुमदुमा नामक स्थल से शिवलिंग प्राप्त हुआ है।
  • पुरातात्विक अन्वेषण से झारखण्ड के पठारी क्षेत्र में आदिमानव के निवास के साक्ष्य मिले हैं, जिससे मानव सभ्यता और संस्कृति के विकास की ‘जंगल-गाथा’ सामने आयी है।

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