Civil Disobedience Movement and Jharkhand | झारखंड का इतिहास बहुत पुराना और गौरव से भरा रहा है। मैं इस लेख के माध्यम से झारखंड के इतिहास के बारे में जानकारी दे रहा हूँ।आशा है कि यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होगी और आपकी प्रतियोगी परीक्षाओं, झारखंड और जी.के. के बारे में सभी प्रकार की जानकारी के लिए मददगार साबित होगी। इसके लिए आप इस वेबसाइट पर विजिट करें।
Civil Disobedience Movement and Jharkhand
- सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रस्ताव दिसम्बर 1929 ई. में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पारित हुआ जिसके अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू थे।
- इस अधिवेशन में पारित पूर्ण स्वतंत्रता प्रस्ताव के आलोक में 26 जनवरी, 1930 को स्वाधीनता दिवस मनाने का फैसला हुआ।
- 26 जनवरी 1930 को झारखण्ड में स्वाधीनता दिवस उत्साहपूर्ण ढंग से मनाया गया। इससे सम्बद्ध कार्यक्रम में आदिवासी भी भारी संख्या में शामिल हुए।
- रांची के तरुण संघ ने इसका सफलतापूर्वक आयोजन किया।
- हजारीबाग में कृष्ण बल्लभ सहाय ने लाठी चार्ज के बीच कचहरी पर झंडा फहराया।
- 6 अप्रैल, 1930 ई. को महात्मा गांधी ने जब नमक आंदोलन का श्रीगणेश किया, तो इस आंदोलन का झारखण्ड के लोगों पर भी गहरा प्रभाव पड़ा।
- झारखण्ड के लोगों ने नमक कानून भंग करने के कार्यक्रम में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। 13 अप्रैल, 1930 को लगभग 200 लोगों ने झारखण्ड में 50 स्थानों पर नमक बनाया।
- हजारीबाग में कृष्ण बल्लभ सहाय ने खजांची तालाब के निकट नमक बनाकर नमक कानून को चुनौती दी। उन्हें एक वर्ष की सजा हुई।
- पलामू में नमक सत्याग्रह का नेतृत्व सोनार सिंह खरवार तथा चंद्रिका प्रसाद वर्मा ने किया।
- शत्रुघ्न प्रसाद वकील ने कलकत्ता में बने नमक को कचहरी परिसर में बाट कर नमक कानून का उल्लंघन किया।
- जमशेदपुर में नमक सत्याग्रह का नेतृत्व ननी गोपाल मुखर्जी ने किया।
- संथाल परगना में श्रीमती शैलबाला राय के नेतृत्व में वहां की महिलाओं ने नमक कानून को चुनौती दी।
- झारखण्ड के मोहन महतो, सहदेव महतो, गणेश महतो. गोकुल महतो ने भी नमक सत्याग्रह में सक्रिय सहयोग दिया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन में संथालों का बड़ा योगदान रहा। उनका नेतृत्व गोमिया थाना के बोरोगेरा ग्राम के बंगम माणे ने किया।
- सितम्बर 1930 ई. में रांची में स्वदेशी सप्ताह मनाया गया।
- 16 नवम्बर 1930 ई. को सर्वत्र ‘जवाहर सप्ताह मनाया गया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान हजारीबाग जेल में बंद रामवृक्ष बेनीपुरी कैदी तथा महामाया प्रसाद सिन्हा और भवानी दयाल संन्यासी कारागार नामक हस्तलिखित पत्रिका निकाला करते थे।
- सिंहभूम में सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ होते ही 400 सिक्ख इसमें शामिल हो गये।
- चक्रधरपुर के कांग्रेसियों ने जंगल के पेड़ काटकर अपना विरोध प्रकट किया। इनका नेतृत्व हरिसिंह, हरिहर महतो तथा लालबाबू कर रहे थे। इन तीनों को जेल की सजा हुई।
- स्वतंत्रता संग्राम का अग्रणी जिला पलामू सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान भी उद्वेलित बना रहा। महात्मा गांधी के बन्दी बनाये जाने की खबर मिलते ही डाल्टनगंज तथा गढ़वा में 8 मई, 1930 को हड़ताल हुई | मई को लातेहार में पूर्ण हड़ताल रही।
- रामवृक्ष मिश्र, महेशलाल, हजारीलाल साव, बिफई राम, ज्योतिष चन्द्र सरकार तथा हरिहर प्रसाद मुख्तार ने 4 जनवरी, 1932 ई. को हमीदगंज (डाल्टनगंज) में एक सभा की। इसी सभा में मुरारी पाठक, भान पाण्डेय, विश्वनाथ चटर्जी तथा नवल किशोर पाठक ‘यूथ लीग में शामिल हुए।
- सम्पूर्ण किसान आंदोलन यदुवंश सहाय के नेतृत्व में चल रहा था।
- 1938 ई. में स्वामी सहजानन्द सरस्वती का आगमन संथाल परगना में हुआ। यहां पर उन्होंने
- किसानों की दशा सुधारने का आंदोलन चलाया। 1940 ई. के व्यक्तिगत सत्याग्रह के अवसर पर गांधीजी अंतिम बार रांची आये थे।