Non-Cooperation Movement and Jharkhand | झारखंड का इतिहास बहुत पुराना और गौरव से भरा रहा है। मैं इस लेख के माध्यम से झारखंड के इतिहास के बारे में जानकारी दे रहा हूँ।आशा है कि यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होगी और आपकी प्रतियोगी परीक्षाओं, झारखंड और जी.के. के बारे में सभी प्रकार की जानकारी के लिए मददगार साबित होगी। इसके लिए आप इस वेबसाइट पर विजिट करें।
Non-Cooperation Movement and Jharkhand
- भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का नेतृत्व जब महात्मा गांधी के हाथों में आया. तब उन्होंने झारखण्ड की भूमि का भी सहयोग लिया।
- महात्मा गांधी के विभिन्न राजनीतिक आंदोलनों का प्रभाव झारखण्ड में बराबर पड़ता रहा।
- 1917 ई. में श्याम कृष्ण सहाय ने गांधीजी को रांची आने का निमंत्रण दिया। महात्मा गांधी के चरण झारखण्ड की धरती पर 4 जून, 1917 को पड़े। इस दिन ये कांग्रेसी नेता ब्रजकिशोर बाबू के साथ रांची आये थे।
- महात्मा गांधी मोतिहारी से चलकर रांची, बिहार के ले. गवर्नर, एडवर्ट गेट से मिलने पहुंचे और श्याम कृष्ण सहाय के यहां ठहरे।
- चंपारण आन्दोलन के स्वरूप का निर्णय गांधीजी ने रांची में ही किया। यहीं से वे चंपारण लिए प्रस्थान किये।
- झारखण्ड में महात्मा गांधी के बाद सक्रिय भूमिका निभाने वाले मौलाना अबुल कलाम आजा को 1916 से 1919 तक रांची में नजरबंद रखा गया था।
- अगस्त 1917 में मौलाना आजाद ने रांची में अंजुमन इस्लामिया और मदरसा इस्लामिया नींव डाली। मौलाना आजाद ने अपना प्रसिद्ध प्रेस अलबेलाग प्रेस बेचकर उससे प्राप्त धनराशि को भी मदरसा में लगा दिया।
- पलामू में 1919 ई. में बिन्देश्वरी पाठक तथा भागवत पांडेय के नेतृत्व में जिला कांग्रेस कमिटी की स्थापना हुई।
- 10 अक्टूबर, 1920 ई. को डाल्टनगंज में बिहार स्टूडेंट कॉन्फ्रेंस का 15वां अधिवेश सी. एफ. एण्डुयज की अध्यक्षता में हुआ। इसमें विद्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों के बहिष्कार और असहयोग आंदोलन को तेज करने का फैसला लिया गया।
- इस अधिवेशन में मजहर-उल-हक, चन्द्रवंशी सहाय, कृष्ण प्रसन्न सेन, अब्दुल बारी. जी. इमाम तथा हसर आरजू जैसे प्रमुख नेता शामिल हुए।
- पलामू कांग्रेस के निर्णयानुसार डाल्टनगंज में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की गयी, जिसके प्रधानाध्यापक विन्देश्वरी पाठक बनाये गये।
- झारखण्ड के रांची, चतरा, गिरिडीह, झरिया, लोहरदगा में राष्ट्रीय विद्यालय खोले गये थे।
- रांची तथा हजारीबाग में 1920 में कांग्रेस कमिटि का गठन किया गया।
- बिहार स्टूडेन्ट कॉन्फ्रेंस का 16वां अधिवेशन 6 अक्टूबर, 1921 को हजारीबाग में हुआ। इस अधिवेशन की अध्यक्षता श्रीमति सरला देवी ने की।
- रांची में रौलेट एक्ट और जालियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व गुलाब
- तिवारी ने किया। 1920 में महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता की लड़ाई के क्रम में अहिंसक असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया।
- सम्पूर्ण झारखण्ड में देश के अन्य भागों की तरह असहयोग आंदोलन व्यापक रूप से प्रारंभ हुआ।
- असहयोग आंदोलन के समय (1920-21 ई. में) गांधीजी स्वयं झारखण्ड आये और रांची में भीमराज वंशीधर मोदी धर्मशाला में ठहरे इसी धर्मशाला के सामने लकाशायर मैन्चेस्टर मिलों के विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई और लोगों ने खादी वस्त्र धारण का व्रत लिया।
- रांची, जमशेदपुर, डाल्टनगंज, हजारीबाग, धनवाद, देवघर, दुमका, गिरिडीह आदि नगर स्वदेशी वस्त्रों को अपनाने तथा विदेशी वस्तुओं को बहिष्कार करने का प्रमुख केन्द्र बना
- 1921 ई. में यह आंदोलन झारखण्ड में काफी तेज हो गया।
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, मोतीलाल नेहरू, मजहरूल हक, स्वामी विश्वानंद, पं. हरिशंकर व्यास आदि नेताओं ने झारखण्ड के अनेक स्थानों का दौरा कर जनसभाओं को संबोधित किया।
- गिरिडीह में असहयोग आंदोलन के सबसे प्रमुख नेता पचम्बा के बाबू बजरंग सहाय थे।
- झारखण्ड में असहयोग आंदोलन का दीप जलाने में गुलाब तिवारी, भोलानाथ वर्मन, पद्मराज जैन,
मौलवी उस्मान, अब्दुर रज्जाक और टाना भगतों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। - असहयोग आंदोलन में झारखण्ड के टाना भगतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टाना भगतों ने गांध भीजी के उपदेशों का अक्षरशः पालन किया। उन्होंने ब्रिटिश सरकार को भूमि कर देना बंद कर दिया।
- असहयोग आंदोलन में झारखण्ड की पहाड़िया जनजाति के लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस
आंदोलन में जबरा पहाड़िया ने हिस्सा लिया। पुलिस ने जबरा को गिरफ्तार कर लिया। उसे एक महीने का सश्रम कारावास की सजा दी गई तथा उसके घर की कुर्की भी गई। - सत्य और अहिंसा के प्रति आगाध निष्ठा के कारण गांधीजी को स्वीकार करना पड़ा कि उनके सारे शिष्यों में टाना भगत सर्वोत्तम थे। जनवरी 1922 में साहेबगंज को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया गया।
- 12 फरवरी, 1922 को चौरा-चौरी कांड के बाद असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया गया। झारखंड में राष्ट्रीय आन्दोलन का व्यापक विस्तार असहयोग आंदोलन के समय हुआ।
- 1922 ई. में कांग्रेस में विभाजन हो गया और स्वराज पार्टी की स्थापना हुई।
- 1923 ई. में जब प्रांतीय लेजिस्लेटिव कौंसिल बनी, तो कृष्ण वल्लभ सहाय स्वराज्य पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में चुने गए।
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