National Movement and Women of Jharkhand भारतीय आज़ादी की गुणवत्ता में गुणात्मक विशेषताएं हैं। 6 अप्रैल, 1930 को गांधी ने संचार का श्रीगणेश कर दिया, तो इस विद्युत का झारखंड की महिला पर चौखट और सम्पादित स्त्रीत्व नें खंड-चढ़कर क्षेत्र में प्रवेश किया।
National Movement and Women of Jharkhand
- भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में झारखण्ड की महिलाओं की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है।
- सरस्वती देवी, राजेश्वरी सरोज दास, शैलबाला राय, जाम्बवती देवी, प्रेमा देवी, उपा रानी मुखर्जी समेत झारखण्ड में एसे अनगिनत नाम हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपनी जान हथेली पर रखकर सम्पूर्ण महिला समाज को सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित किया। इनके बलिदान और संघर्ष की गाथा इतिहास के पन्नों को आज भी जीवंतता प्रदान कर रही है।
- 1917 में महात्मा गांधी के प्रथम झारखण्ड आगमन के पश्चात् इसमें तेजी आयी और यहां की सक्रिय महिला नेताओं को प्रेरणा से झारखण्ड के महिला समाज में आजादी की लहर पैदा हो गयी।
- असहयोग आंदोलन के दौरान हजारीबाग की सरस्वती देवी ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
- 6 अप्रैल, 1930 को जब महात्मा गांधी ने नमक आंदोलन का श्रीगणेश किया, तो इस आंदोलन का झारखण्ड की महिलाओं पर गहरा प्रभाव पड़ा और सम्भ्रांत महिलाओं ने भी नमक कानून भंग करने के कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।
- संथाल परगना में श्रीमती शैलबाला राय के नेतृत्व में वहां की महिलाओं ने नमक कानून को चुनौती दी।
- नमक आंदोलन के दौरान हजारीबाग जिला कांग्रेस कमिटी की अध्यक्षा श्रीमती सरस्वती देवी एवं श्रीमती साधना देवी को गिरफ्तार किया गया और उन्हें छह माह तक कड़ी कारावास की सजा दी गयी।
- जुलाई 1930 में गिरिडीह की श्रीमती मीरा देवी को गिरफ्तार किया गया। ये नमक सत्याग्रह आंदोलन के तहत गिरफ्तार होने वाली तीसरी महिला थीं।
- दुमका कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष की पत्नी श्रीमती महादेवी केजरीवाल ने 1941 ई. में दुमका नगर में सत्याग्रह करने का फैसला लिया।
- 11 अगस्त, 1942 को हजारीबाग में श्रीमती सरस्वती देवी के नेतृत्व में एक विशाल जुलूस निकाला गया। उसी दिन सरस्वती देवी को गिरफ्तार कर भागलपुर जेल भेजने का आदेश दिया गया।
- 12 अगस्त, 1942 को जब सरस्वती देवी एक अन्य महिला कैदी के साथ हजारीबाग से भागलपुर केन्द्रीय जेल लायी जा रही थीं, तब विद्यार्थियों के एक दल ने धावा बोल कर पुलिस की हिरासत से उन्हें छुड़ा लिया। किन्तु, 14 अगस्त, 1942 को एक जनसभा में भाषण करते हुए वह पुनः गिरफ्तार हो गयीं।
- दुमका में श्रीमती जाम्बवती देवी एवं श्रीमती प्रेमा देवी के नेतृत्व में 19 अगस्त, 1942 को एक विशाल जुलूस निकाला गया। इन दोनों महिलाओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
- संथाल परगना के हरिहर मिर्धा की पत्नी बिरजी 28 अगस्त, 1942 को ब्रिटिश पुलिस गश्तीदल द्वारा गोली से उड़ा दी गयी।
- पलाम में महाक्रांति की बागडोर कुमारी राजेश्वरी सरोज दास के हाथों में थी। उन्होंने जपला सीमेंट कारखाना में काम करने वाले मजदूरों तथा किसानों को संगठित किया। श्रीमती दास के कार्यों से घबरा कर सरकारी अधिकारियों ने उनके विरुद्ध ‘भारत रक्षा कानून’ के तहत कार्रवाई की।