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Ghatwal Rebellion & Ramgarh Rebellion | Jharkhand

Ghatwal Rebellion(1772-1773) – घटवाल विद्रोह (1772-1773 ई.)

पहाड़ियों के घाटों (रास्तों) से महसूल वसूलने वाले को ‘घटवाल’ कहा जाता था। 1772 ई. में अंग्रेजों के विरुद्ध हज़ारीबाग खासकर रामगढ़ राज्य के घटवालों द्वारा किए गए विद्रोह को ‘घटवाल विद्रोह’ कहा जाता है। यह विद्रोह अपने राजा के प्रति किए गए अंग्रेजों के दुर्व्यवहार का विरोध था। रामगढ़ नरेश मुकुंद सिंह के राज्य पर जब उसके एक सम्बन्धी तेज सिंह ने अपना अधिकार जताया तो अंग्रेजों ने तेज सिंह का समर्थन किया। मुकुंद सिंह पर अंग्रेज कैप्टेन जैकब कैमक ने दक्षिण की तरफ से तथा तेज सिंह ने उत्तर की तरफ से एक साथ हमला बोला। बंदी बनाये जाने के डर से मुकुंद सिंह भाग खड़ा हुआ। चूँकि घटवाल मुकुंद सिंह के वफादार रैयत थे, इसलिए उन्होंने विद्रोह कर दिया। आन्द्रगरबा घाटी के घटवाल लोरंगा व दुनगुना घाटी के घटवाल से मिलकर कैप्टेन जैकब कैमक का विरोध करने लगे। इस विद्रोह में है व चम्पा राज्य के रैयतों ने भी रामगढ़ नरेश मुकुंद सिंह का साथ दिया। 

इस विद्रोह की खास बात यह रही कि इसमें किसी युद्ध जैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा था। घटवालों का संगठन देखकर युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई थी, किन्तु अंग्रेजों द्वारा समझाने-बुझाने से वे शांत हो गए। घटवालों व रैयतों को जब यह लगा कि मुकुंद सिंह किसी भी कीमत पर पुनः राजा नहीं बन सकता, तो वे भी उसका साथ छोड़कर अपने-अपने काम-धंधे में लग गए। इस प्रकार, यह विरोध बिना कोई विस्फोटक स्थिति उत्पन्न किए समाप्त हो गया। बाद में अंग्रेजों ने घटवालों को कई रियायतें प्रदान की।

Ramgarh Rebellion (1772-1782) – रामगढ़ विद्रोह(1772-1782)

  • हजारीबाग क्षेत्र में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को सबसे अधिक विरोध का सामना रामगढ़ राज्य की ओर से करना पड़ा।
  • रामगढ़ का राजा मुकुन्द सिंह शुरू से अंत तक अंग्रेजों का विरोध करता रहा।
  • 25 अक्टूबर, 1772 को रामगढ़ राज्य पर दो तरफ से हमला कर दिया गया। छोटानागपुर खास की ओर से कप्तान जैकब कैमक और इवास तथा दूसरी ओर से तेज सिंह ने मिलकर आक्रमण किया।
  • 27–28 अक्टूबर को दोनों की सेना रामगढ़ पहुंची। कमजोर स्थिति होने के कारण रामगढ़ राजा मुकुन्द सिंह को भागना पड़ा।
  • 1774 ई. में तेजसिंह को रामगढ़ का राजा घोषित किया गया। मुकुन्द सिंह के निष्कासन एवं तेजसिंह को राजा बनाये जाने के बाद भी वहां स्थिति सामान्य नहीं हुई।
  • मुकुन्द सिंह के अतिरिक्त उसके अनेक संबंधी भी अपनी खोई हुई शक्ति प्राप्त करने के लिए सक्रिय थे।
  • सितम्बर 1774 ई. में तेजसिंह की मृत्यु हो गयी। इसके बाद उसका पुत्र पारसनाथ सिंह गद्दी पर बैठा।
  • मुकुन्द सिंह अपने समर्थकों के साथ उस पर हमला करने की तैयारी में लगा हुआ था, परंतु अंग्रेजों के कारण उसे सफलता नहीं मिल रही थी।
  • 18 मार्च, 1778 ई. को अंग्रेजी फौज ने मुकुंद सिंह की रानी सहित उसके सभी प्रमुख संबंधियों को पलामू में पकड़ लिया।
  • 1778 ई. के अंत तक पूरे रामगढ़ राज्य में अशांति की स्थिति बनी रही।
  • रामगढ़ राजा पारसनाथ सिंह बढ़ी हुई राजस्व की राशि 71,000 रुपये वार्षिक देने में सक्षम न था। इसके बावजूद रामगढ़ के कलक्टर ने राजस्व की राशि 1778 ई. में 81,000 रुपये वार्षिक कर दी। यह स्थिति 1790 ई. तक बरकरार रही।
  • ठाकुर रघुनाथ सिंह (मुकुंद सिंह के समर्थक) के नेतृत्व में विद्रोही तत्व विद्रोह पर उतारू थे। रघुनाथ सिंह ने चार परगनों पर कब्जा  कर लिया और वहां से पारसनाथ सिंह द्वारा नियुक्त जोगीरदारों को खदेड़ दिया।
  • विद्रोहियों के दमन के लिए कप्तान एकरमन की बटालियन को बुलाना पड़ा। एकरमन और ले. डेनिएल के संयुक्त प्रयास से रघुनाथ सिंह को उसके प्रमुख अनुयायियों के साथ बंदी बना लिया गया। रघुनाथ सिंह को चटगांव भेज दिया गया।
  • रामगढ़ की सुरक्षा का जिम्मा कैप्टन क्रॉफर्ड को सौंप दिया गया।
  • अंग्रेजी कम्पनी के निरन्तर बढ़ते शिकंजे तथा करों में बेतहाशा वृद्धि से रामगढ़ के राजा पारसनाथ अब स्वयं अंग्रेजों के चंगुल से निकलने का उपाय सोचने लगे।
  • 1781 ई. में उसने बनारस के विद्रोही राजा चेतसिंह को सहायता प्रदान की।
  • राजा अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सालाना कर का कुछ भाग बचाकर अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करने के अभियान में जुट गया।
  • 1781 ई. के अन्त तक सम्पूर्ण रामगढ़ में विद्रोह की आग सुलगने लगी। विद्रोह की तीव्रता को देख रामगढ़ के कलक्टर ने स्थिति को काबू में लाने के लिए सरकार से सैन्य सहयता की मांग की।
  • 1782 ई. तक रामगढ़ के अनेक क्षेत्र उजाड़ पड़ गये और रैयत पलायन कर गये। स्थिति की भयावहता को देखते हुए उप कलक्टर जी. डलास ने सरकार से आग्रह किया कि रामगढ़ के राजा को राजस्व वसूली से मुक्त कर दिया जाये और राजस्व वसूली के लिए सीधा बंदोबस्त किया जाये।
  • रामगढ़ के राजा द्वारा इस नयी व्यवस्था के पूरजोर विरोध के बावजूद डलास ने जागीरदारों के साथ खास बंदोबस्त कर राजा द्वारा उनकी जागीर को जब्त किये जाने पर रोक लगा दी। अर्थात् रामगढ़ का राजा अब सिर्फ मुखौटा बन कर रह गया। –
  • 1776 ई. में फौजदारी तथा 1799 ई. में दीवानी अदालत की स्थापना से राजा की स्थिति और भी कमजोर हो गयी। स्थिति का लाभ उठाते हुए तमाड़ के जमींदारों ने रामगढ़ राज्य पर निरंतर हमले किये। राजा पूरी तरह अंग्रेजों पर आश्रित हो गया। यह स्थिति 19यीं शताब्दी के प्रारंभ तक बनी रही।
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